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कविता

अंतिम इच्छा जैसा कुछ भी नहीं है जीवन में

दिनेश कुशवाह


जब हमें कुछ खोया-खोया सा लगता है
और पता नहीं चलता कि
क्या खो गया है
तो वे दिन जो बीत गए
दिल की देहरी पर
दस्तक दे रहे होते हैं।

वे दिन जो बीत गए
लगता है बीते नहीं
कहीं और चले गए
बहुत सारे अनन्यों की तरह
और अभी रह रहे हैं
इसी देश काल में।

जो बीत गया इस जीवन में
उसे एक बार और
छूने के लिये तरसते रहते हैं हम
बीते हुए कल की न जाने
कितनी चीजें हैं जिन्हें
हम पाना चाहते हैं उसी रूप में
बार-बार
नहीं तो सिर्फ एक बार और।

ललकते रहते हैं
उन्हें पाने के लिए हम
मरने से पहले
अंतिम इच्छा की तरह
और अंतिम इच्छा जैसा
कुछ भी नहीं है जीवन में।


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